हैदराबाद के Green Lung's का विनाश-शहरीकरण के लिए खोई प्रकृति

आजकल भारत के लगभग सभी महानगरों में सरकार शहरीकरण की रफ्तार को तेजी से बढ़ा रही है; जिससे हरियाली तथा प्रकृति की अहमियत पीछे छूट रही है। जिसमें हैदराबाद भी इस दौर में पीछे नहीं है अब यह अभी इस दौर में आ चुका है और जंगलों को बर्बाद कर रहा है परंतु इस बढ़ते विकास की चमक के पीछे एक घना अंधेरा भी छाया हुआ है- हमारे शहर के "Green Lung's" का तेजी से विनाश हो रहा है। हैदराबाद के 400 एकड़ में फैले कांचा गचिबावली तक के जंगल तथा हरे- भरे क्षेत्र को नष्ट कर दिया गया है। जहां पहले हिरण, हाथी, शेर, मोर, तोता और अन्य न जाने कितने अनगिनत पशु- पक्षी आर्थिक रूप से बिना किसी भय के अपना जीवन व्यतीत करते थे, आज वह उन जेसीबी व अन्य मशीनों की आवाज तथा गड़गड़ाहट को सुनकर कांप रहे हैं। इस क्षेत्र को आईटी पार्क के निर्माण के लिए नष्ट किया गया है। पेड़ों की कटाई जंगलों की साफ- सफाई तथा होते हुए नए निर्माण के कारण इस प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) को अपूर्ण रूप से क्षति पहुंचाई जा रही है।

ग्रीन लंग्स का विनाश

क्या है "Green Lung's?"

ग्रीन लंग्स शब्द का अर्थ है-  ऐसे हरे- भरे क्षेत्र जो हमारे पर्यावरण के लिए फेफड़ों की तरह कार्य करते हैं। यह क्षेत्र शहरों व नगरों को स्वच्छ वायु देने, तापमान को नियंत्रित करने, जल स्तर को बनाए रखने तथा जैव विविधता को संजो कर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हैदराबाद में बहुत से ऐसे इलाके हैं जिनको ग्रीन लंग्स कहा जाता है, जैसे - कावल टाइगर रिजर्व, अमराबाद फॉरेस्ट, महेंद्र हिल्स तथा शहर के बाहरी हिस्सों में फैले हुए अन्य हरे-भरे क्षेत्र। यह न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से अमूल्य है, बल्कि यहां की परंपरा व संस्कृति से भी गहराई से जुड़े हैं।

विनाश की शुरुआत

हाल ही में 30 मार्च से 2 अप्रैल के मध्य हैदराबाद में कांचा गचीबावली जंगल को आईटी पार्क के निर्माण, रिंग रोड विकसित करने के लिए जंगलों की कटाई हो रही है। कार्यों के निर्माण के लिए सैकड़ो एकड़ में फैले वृक्षों को उखाड़ दिया गया है। इस कार्य को बिना सोचे समझे और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में न रखकर किया जा रहा है परिणाम यह है कि यहां के वन्य जीव- जंतुओं का आवास उजड़ चुका है। मोर जो भारतीय संस्कृति के लिए शुभ माने जाते हैं अब वह सुरक्षित नहीं है यह रहने के लिए स्थान की तलाश में भटक रहे हैं हिरण तथा हाथी जैसे जानवरों को इंसानों के इलाके की तरफ आता देखा गया है जिससे मानव पशुओं के संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

ग्रीन लंग्स के विनाश का दुष्परिणाम

ग्रीन लंग्स के विनाश का दुष्परिणाम

1. वायु प्रदूषण में वृद्धि

जिस तरह से पेड़ों की संख्या घट रही है, वायु में कार्बन- डाइ- ऑक्साइड का स्तर बढ़ता जा रहा है शहर की हवा पहले से अत्यधिक प्रदूषित होती जा रही है।

2. तापमान में तेजी से वृद्धि

ग्रीन लंग्स शहरी इलाकों में ठंडक बनाए रखते हैं। इनके कटने से शहर में हीट आईलैंड इफेक्ट बढ़ रहा है, जिससे गर्मियों में तापमान अत्यधिक तेजी से 45 डिग्री तक पहुंच जाता है इससे ज्यादा भी हो सकता है।

3. जीव- जंतुओं व पक्षियों का पलायन तथा विलुप्ति

प्राकृतिक आवास के आस में भटक रहे बहुत से जानवर मर गए हैं या दूसरे स्थान पर पलायन कर रहे हैं।जिससे जैव विविधता को बहुत नुकसान हो रहा है।

4. जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा

पेड़ वर्षा होने वाले जल को आकर्षित करते हैं और जल को जमीन में समाहित करते हैं। उनके कटने से बारिश होने की संभावनाएं कम हो रही है और पैटर्न भी प्रभावित हो रहा है।

5. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

प्रदूषण के बढ़ने और हरियाली के घटने से सांस की बीमारियां, एलर्जी तथा मानसिक तनाव बढ़ते जा रहे हैं।

कौन है जिम्मेदार?

सरकार व विकास प्राधिकरणों द्वारा कहना है कि यह सभी कार्य "विकास" के नाम पर हो रहे हैं- जिससे लोगों को बेहतर सड़के, पार्क, कनेक्टिविटी तथा सुविधा मिले। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विकास टिकाऊ होगा? यदि हम इस विकास की कीमत पर्यावरण वन्य जीवों तथा भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य से चुका रहे हैं, तो क्या यह विकास हो रहा है या विनाश?

स्थानीय लोगों की चिंता

हैदराबाद के अनेकों नागरिकों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं तथा हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (HCU) कैम्पस के छात्र-छात्राओं ने इसका विरोध प्रदर्शन किया। मीडिया कैंपेन और जन आंदोलन के द्वारा जंगलों को बचाने की कोशिश की।

प्रमुख मांगे:

  • ग्रीन जोन में हो रहे निर्माण कार्यों पर रोक।
  • हर एक कटे पेड़ के बदले उनसे अधिक पेड़ लगाए जाय।
  • पर्यावरण असर को पूरा ध्यान में रखकर ही किसी भी कार्य को शुरू किया जाए।
  • वन्य जीवों को रहने के लिए सुरक्षित कॉरिडोर बनाए जाए।

समाधान कैसे हो सकता है?

1. सस्टेनेबल डेवलपमेंट

ऐसी योजनाएं बनाई जाए जो विकास और पर्यावरण को साथ लेकर चले। 

2. री-फारेस्टेशन प्रोग्राम

काटे गए वृक्षों की भरपाई के लिए बड़े स्तर पर वृक्षारोपण होना।

3. प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा

वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों को सुरक्षित किया जाना चाहिए।

4. जन- जागरूकता

लोगों को इस संकट के लिए जागृत तथा शिक्षित किया जाए जिससे सामूहिक प्रयास किया जा सके। 

5. कानूनी सुरक्षा

पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम को सख्त लागू किया जाए।

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निष्कर्ष: अब हमें जागृत होना होगा

हैदराबाद का यह ग्रीन लंग्स जिसे नष्ट किया जा रहा है, यह केवल जंगल ही नहीं बल्कि एक जीवित पारिस्थितिकी तंत्र है- जिसमें इंसानों से लेकर जानवरों, पक्षियों, कीटों तथा पेड़ों तक सभी का जीवन इससे जुड़ा हुआ है। अगर आज हमने इसके लिए आवाज नहीं उठाई और इसे नहीं बचा पाए, तो आने वाले कल में हमें केवल कंक्रीट के जंगल मिलेंगे, परंतु वह जीवन नहीं जो हमें स्वस्थ व जीवंत बनाए रहता है।

इस समय हमें यह समझने की जरूरत है कि:

  • विकास भी जरूरी है परंतु बिना पर्यावरण के नहीं।
  • प्रकृति हमारी एक साथी की तरह है प्रतिस्पर्धा नहीं।
  • हर एक पेड़ हर एक प्राणी का जीवन मूल्यवान होता है।

क्या आप इस आवाज में शामिल होंगे?

आप एक आम नागरिक के रूप में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। सोशल मीडिया पर इस विचार को साझा करें, वृक्षारोपण करें और अपने स्थानीय प्रतिनिधियों से इसके बारे में सवाल पूछें और उनके विचारों को जानें क्योंकि यदि हमने आज अपनी प्रकृति के लिए आवाज नहीं उठाई, तो आने वाली पीढ़ियां कभी- भी हमें माफ नहीं करेंगी।

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